लकवे का इलाज और कारण : – लकवा एक खतरनाक बीमारी है और इस प्रकार के बॉडी का आधा हिस्सा काम करना बंद कर देता है. इस बीमारी में शरीर के अंगो में टेढ़ापन आ जाता है. ये बीमारी व्यक्ति की पूरी तरह से असहाय और दूसरों पर पूरी तरह से निर्भर हो जाते है. और हर छोटा से छोटा काम भी करने के लिए वो दुसरो पर निर्भर हो जाते है. लकवा एक लाइलाज बीमारी मानी जाती है लेकिन आयुर्वेद में इसका इलाज संभव है और इसका इलाज भी बहुत है.जब हमारी मांसपेशियाँ कार्य करने में पूर्णतः असमर्थ हों जाती है उस स्थिति को पक्षाघात, लकवा या फालिज कहते हैं.
लकवे का इलाज और कारण
मांसपेशियों की दुर्बलता और मानसिक दुर्बलता के करना भी लकवा होने की सम्भावना रहती है. बढ़ता हुआ रक्तचाप और उलटी सामान्य से अधिक होना व साथ में दस्त का लगातार होना भी लकवे का मुख्य करना हो सकता है.जब अचानक मस्तिष्क के किसी हिस्से मे खून का दौरान रुक जाता है या मस्तिष्क की कोई रक्त वाहिका फट जाती है और मस्तिष्क की कोशिकाओं के आस-पास खून एकत्र हो जाता है ऐसी अवस्था में शरीर के किसी भी हिस्से में लकवा हो सकता है अथवा किसी हिस्सों में रक्तवाहिका में खून का थक्का बनने के कारण खून की पूर्ति बंद हो जाय तो उस अंग में लकवा हो जाता है.लकवे की बीमारी के कई सारे लक्षण है जिन्हे आप पहले से पहचान सकते है की लकवा है या नहीं जैसे यदि शरीर की नसों का सुख जाना और उनमे तरल का न बहना और व्यक्ति का बोलना खत्म हो जाना भी इसका का लक्षण है. आँख नाक कान और मुँह आदि का टेढ़ा हो जाना बहुत ज़ोरो का सिरदर्द होना और बार बार चक्कर आना लकवा की बीमारी के लक्षण है. शरीर में बहुत तेज सी कम्पन होना भी लकवे का लक्षण है. यदि इन लक्षणों मेसे कोई भी एक लक्षण होता है तो वो लकवा हो सकता है और लकवे का ठीक समय पर उपचार करके इस बीमारी को शरीर में फैलने से रोक सकते है.
लकवे में एक बहुत ही सटीक उपचार माना जाता है. उसके अनुसार इस उपचार में पहले दिन लहसुन की पूरी कली पानी के साथ निगल जाएँ. फिर नित्य 1-1 कली बढ़ाते हुए 21वें दिन पूरी 21 कलियाँ निगलें. तत्पश्चात 1-1 कली घटाते हुए निगले. इस प्रयोग को करने से लकवे में शीघ्र ही आराम मिलता है. 10 ग्राम सूखी अदरक और १० ग्राम बच पीसलें इसे ६० ग्राम शहद मिलावें. यह मिश्रण रोगी को 6 ग्राम रोज देते रहें. 10 लहसुन की 4 कली पीसकर दो चम्मच शहद में मिलाकर रोगी को चटा दें. लकवा रोगी का ब्लड प्रेशर नियमित जांचते रहें. अगर रोगी के खून में कोलेस्ट्रोल का लेविल ज्यादा हो तो रोगी तमाम नशीली चीजों से परहेज करे. भोजन में तेल,घी,मांस,मछली का उपयोग न करे.
बरसात में निकलने वाला लाल रंग का कीडा वीरबहूटी लकवा रोग में बेहद फ़ायदेमंद है. बीरबहूटी एकत्र कर लें. छाया में सूखा लें. सरसों के तेल पकावें. इस तेल से लकवा रोगी की मालिश करें. कुछ ही हफ़्तों में रोगी ठीक हो जायेगा. इस तेल को तैयार करने मे निरगुन्डी की जड भी कूटकर डाल दी जावे तो दवा और शक्तिशाली बनेगी. एक बीरबहूटी केले रोजाना देने से भी लकवा में अत्यन्त लाभ होता है. सफ़ेद कनेर की छाल और काला धतूरा के पत्ते बराबर वजन में लेकर सरसों के तेल में पकावें. यह तेल लकवाग्रस्त अंगों पर मालिश करें. अवश्य लाभ होगा. लहसुन की 5 कली दूध में उबालकर लकवा रोगी को नित्य देते रहें. इससे ब्लडप्रेशर ठीक रहेगा और खून में थक्का भी नहीं जमेगा.
लकवा का रोग होने पर एक काले कपड़े में पीपल की सूखी जड़ को बांधकर उसे लकवा से पीडि़त व्यक्ति के सिर के नीचे रखें तो कुछ ही दिनों में इससे लाभ मिलना शुरू हो जाता है.प्रत्येक शनिवार के दिन एक नुकीली कील से लकवा के रोगी के प्रभावित अंग को आठ बार उसारकर मन ही मन में शनिदेव का स्मरण करते हुए उसे पीपल के वृक्ष की मिट्टी में गाड़ दें। साथ ही यह निवेदन करें कि हे शनि देव जिस दिन लकवा का रोग दूर हो जाएगा, हम उस दिन किलों को निकाल लेंगे. ऐसा लगातार 21 शनिवार तक करें और जब लकवा का रोग ठीक हो जाए तब शनिदेव व पीपल को आभार प्रकट करते हुए वह सभी कीलें निकालकर उन्हें नदी में प्रवाहित कर दें.